देवाधिदेव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करने के पश्चात हम प्रभु और माता से प्रार्थना के लिए हम श्री पार्वती वल्लभ अष्टकम करते हैं। श्री पार्वतीवल्लभ अष्टकम पढ़ने से पहले हमें अपने मन को एकाग्र करके प्रार्थना करना चाहिए। यह अष्टकम पढ़ने से दुःख दरिद्रता सब दूर हो जाता है। श्री पार्वतीवल्लभ अष्टकम करने से मनुष्य के जीवन से सभी व्याधियां कट जाती है। साथ ही साथ मन में अच्छे विचारों का प्रवाह होने लगता है। हमें प्रतिदिन यह प्रार्थना करनी चाहिए।

नमो भूतनाथं नमो देवदेवं
नमः कालकालं नमो दिव्यतेजम् ।
नमः कामभस्मं नमः शांतशीलं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकंठम् ॥
सदा तीर्थसिद्धं सदा भक्तरक्षं
सदा शैवपूज्यं सदा शुभ्रभस्मम् ।
सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानतल्पं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकंठम् ॥
श्मशानं शयानं महास्थानवासं
शरीरं गजानां सदा चर्मवेष्टम् ।
पिशाचादिनाथं पशूनां प्रतिष्ठं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकंठम् ॥
फणीनागकंठे भुजंगाद्यनेकं
गले रुंडमालं महावीर शूरम् ।
कटिव्याघ्रचर्मं चिताभस्मलेपं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकंठम् ॥
शिरश्शुद्धगङ्गा शिवा वामभागं
बृहद्दीर्घकेशं सदा मां त्रिणेत्रम् ।
फणीनागकर्णं सदा फालचंद्रं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकंठम् ॥
करे शूलधारं महाकष्टनाशं
सुरेशं परेशं महेशं जनेशम् ।
धनेशामरेशं ध्वजेशं गिरीशं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकंठम् ॥
उदासं सुदासं सुकैलासवासं
धरानिर्धरं संस्थितं ह्यादिदेवम् ।
अजाहेमकल्पद्रुमं कल्पसेव्यं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकंठम् ॥
मुनीनां वरेण्यं गुणं रूपवर्णं
द्विजैः संपठंतं शिवं वेदशास्त्रम् ।
अहो दीनवत्सं कृपालुं शिवं तं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकंठम् ॥
सदा भावनाथं सदा सेव्यमानं
सदा भक्तिदेवं सदा पूज्यमानम् ।
महातीर्थवासं सदा सेव्यमेकं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकंठम् ॥
इति श्रीमच्छंकरयोगींद्र विरचितं पार्वतीवल्लभाष्टकं नाम नीलकंठ स्तवः ॥
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