शिव रूद्राष्टकम स्तुति

सभी देवों में महादे का स्थान सर्वोपरि है, देवाधिदेव महादेव को कोई भी बहुत आसानी से महादेव को प्रसन्न कर सकता है, शिव को अगर हम एक लौटा जल श्रद्धा पूर्वक अर्पण करते हैं तो महादेव प्रसन्न हो जाते है, देवों के साथ साथ दानव भी महादेव को प्रसन्न करने में पीछे नहीं रहते थे इसी लिए तो शिव को भोलेनाथ भी कहते है, जब कोई अपने शत्रु पर विजय प्राप्त करना चाहता है वो भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रुद्राष्टकम पाठ करता है, महान कवि तुलसीदास जी द्वारा रचित रुद्राष्टकम पाठ करने से एक अलग ही ऊर्जा मिलती है।

प्राचीन शिव मंदिर, सी पी, दिल्ली
प्राचीन शिव मंदिर, सी पी, दिल्ली

रुद्राष्टकम का उल्लेख श्री तुलसी दास जी द्वारा रचित श्री राम चरितमानस पाठ के उत्तरकांड में 107वे दोहा में भी आता है, जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम रामेश्वरम में देवाधिदेव महादेव की शिव लिंग की स्थापना कर के पूजन कर रहे थे उस समय रुद्राष्टकम पाठ किया था। रुद्राष्टकम पाठ करने से रोग व्याधि सभी बाधाएं कट जाती है।

श्री गोस्वामीतुलसीदास जी, प्राचीन हनुमान मंदिर  सी पी, दिल्ली
श्री गोस्वामीतुलसीदास जी, प्राचीन हनुमान मंदिर  सी पी, दिल्ली

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम् ॥

निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं, गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं, गुणागारसंसारपारं नतोहम् ॥

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं, मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा, लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं, भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी, सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

न यावद् उमानाथपादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां, नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥

रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति ॥

।। इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥