देव दिवाली, हिंदू धर्म में सभी धार्मिक त्यौहार में से बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है देव दीपावली जो कि दिवाली से ठीक 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। दिवाली से ठीक 11 दिन बाद एकादशी से गंगा दशहरा शुरू होता है जो कि पूर्णिमा तक चलता है। यह बहुत ही अच्छा समय होता है, इस दिन गंगा में स्नान ध्यान कर के अन्न दान करना बहुत ही फलदाई होता है, हम कार्तिक पूर्णिमा भी कहते है। हिंदू धर्म में धार्मिक कथाओं के अनुसार इस दिन धरती पे सभी देवी देवता गंगा में पवित्र स्नान के लिए आते है।
देव दिवाली या देव दीपावली कथा
एक और पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा बताया जाता है कि त्रिपुरासुर नाम का एक दैत्य था जो धरती पे और स्वर्ग पे अपना आतंक फैलाया था सभी दिशाओं में त्राहि त्राहि मची थी। दैत्य ने कठिन तपस्या कर के ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर के अमरत्व का वरदान प्राप्त किया था कि, उसको न ही स्त्री, पुरुष, दैत्य, पक्षी, जीव, जंतु, निशाचर उसे कोई न मार सके। तभी सभी देवता गण मिलके देवाधि देव महादेव के पास गए और तब महादेव प्रदोष काल में अर्धनारिश्वर के रूप में त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया।

दीपावली की कथा
दिवाली का त्यौहार सनातन धर्म में अमावस्या के दिन मनाई जाती है ऐसा माना जाता है कि जब प्रभु श्री राम भ्राता लक्ष्मण, हनुमान जी और अपनी सेना के साथ मिलकर लंकापति रावण का वध कर बुराई पर अच्छाई की विजय प्रताप कर के 14 वर्ष बाद वनवास से अयोध्या वापस आए थे उसकी खुशी में, अयोध्या नगरी को दीपो से सजाया गया था।
क्यों मनाई जाती देव दिवाली?
जब महादेव ने त्रिपुरासुर का वध कर दिया उसकी खुशी में देवताओं ने देव दिवाली का त्यौहार काशीनगरी में बड़े ही धूम धाम से मनाया। काशी में दीप प्रज्वलित कर के देवताओं खुशियां मनाई जिसे देव दिवाली के रूप में आज भी हम मनाते है। यह त्यौहार बुराई पे अच्छाई की जीत है।
कहा मनाई गई पहली बार देव दीपावली?
देव दिवाली पहली बार पंच गंगा घाट पे मनाया गया था, पंच गंगा घाट पे पांच पवित्र नदियों का संगम होता है। पंच गंगा घाट पे देव दिवाली (कार्तिक पूर्णिमा) के दिन स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है, ऐसी मान्यता है कि इस अवसर पे स्वयं तीर्थराज प्रयाग भी स्नान करते है।
देव दीपावली पर घाटों पर दीपदान का विशेष महत्व हैं
स्नान के उपरांत पंच गंगा घाट पे ही श्री हरि विष्णु जी के अवतार बिंदु माधव जी की विशेष पूजा की जाती है। कार्तिक महीने में भगवान विष्णु की और मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। इस शुभ अवसर पर गंगा के सभी 84 घाटों को दीप प्रज्वलित कर के मनाया जाता है। सभी घाटो की अच्छे से सफाई कर के सुंदर तरीके से सजाया जाता है और लाखों दिए जलाए जाते है। कार्तिक पूर्णिमा पर किया गया दीपदान फलदायी माना गया है|

इस त्योहार का देश विदेश में बहुत महत्व है, अन्य दूसरे देशों से भी लोग देव दिवाली देखने वाराणसी में आते है। इस दिन गंगा आरती का विशेष महत्व होता है, गंगा घट पे बहुत ही सुंदर लेजर शो भी होता है जो दर्शनार्थियों और पर्यटकों को बहुत ही मोहित करता है, उस हर पल को अपनी पलकों में समेटना चाहते है यह पल बहुत हो मनमोहित करता है। प्रदोष काल में मनाया जाता है। इस दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होता है।
2025 में देव दिवाली 5 नवम्बर 2025 (बुधवार) को 5:15 PM से 7:50 PM के बीच, जब घाटों पर दीपदान एवं गंगा आरती होती है|
पहली बार देव दिवाली कौन मनाया था?
देवताओं ने।
देव दिवाली किस दिन मनाया जाता है?
कार्तिक पूर्णिमा के दिन।
देव दिवाली कहा मनाई जाती है?
वाराणसी (काशीनगरी)।
सर्वप्रथम देव दिवाली कहा मनाई गई थी?
वाराणसी, पंचगंगा घाट पे।
देव दिवाली कैसे मनाई जाती है?
गंगा स्नान, पूजा ध्यान, अन्न दान, और दीप दान कर के।
क्या देव दिवाली देखने कोई भी जा सकता है?
जी, हा कोई भी जा सकता है।
देव दिवाली कब मनाते है सुबह या सायं काल?
सांय काल में(प्रदोष काल में)।
घाट पे कब पहुंचना चाहिए ?
4:00 PM, ताकि अच्छे से घूम फिर के देखे।
क्या देव दिवाली देखने के लिए कोई टिकट लगता है?
नहीं, कोई टिकट नहीं लगता है।
क्या आईडी प्रूफ जरूरी है।
अच्छा रहेगा अगर आप अपने पास रखे।
देव दिवाली के समय शहर में होटल आसानी से मिल जाता है क्या?
बिल्कुल नहीं, क्योंकि उस समय पूरे विश्व से पर्यटक आते है, आपको पहली ही होटल बुक कर लेना चाहिए।
देव दिवाली के दिन घाट को सजाया जाता है क्या और दीप प्रज्वलित भी किया जाता है क्या?
जी, हा घाट को बहुत ही सुंदर तरीके से सजाया जाता है और दीप प्रज्वलित कर के देव दिवाली मनाई जाती है।
क्या देव दिवाली पे नाव चलती है?
हा बिल्कुल।
क्या देव दिवाली पे नाव की सवारी ले सकता हु?
हा बिल्कुल, नाव से सवारी करने से घाट की सुंदरता देख के मनमोहित होता है।
देव दिवाली के दिन क्या उत्सव मनाया जाता है?
कार्तिक पूर्णिमा स्नान और ध्यान।
भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी की विशेष पूजा का प्रावधान है।
घाट पे दीप प्रज्वलन।
गंगा आरती।
लेजर लाइट की प्रदर्शनी।
सांस्कृतिक कार्यक्रम।
आतिशबाजी प्रदर्शनी।
मंदिर में विशेष पूजा और सजावट।
शहीदों के नाम भी दीप प्रज्वलित किया जाता है।
किन किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है?
होटल पहले से बुक कर ले।
नाव पहले से बुक करे।
समय से पहले पहुंच के पार्किंग में कार बाइक लगा ले।
आरती दर्शन के लिए जल्दी पहुंचे।
घाट पे पहुंच के अपना स्थान सुनिश्चित कर ले।